महा शिवरात्रि 2022 कब है? इसे क्यों मनाया जाता है?
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ महामृत्युंजय मंत्र
पंचांग के अनुसार भारत में 1 मार्च 2022 को महा शिवरात्रि है| फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि की शुरुआत- 1 मार्च 2022 अपराह्न 5 : 21 , और चतुर्दर्शी तिथि की समाप्ति 2 मार्च 2022 अपराह्न 7:00 बजे हो रही है | निशीथ काल पूजा मुर्हूत : रात 12 बजकर 8 मिनट 27 सेकेंड से रात 12 बजकर 58 मिनट 8 सेकेंड तक | पूजा की अवधि: 49 मिनट तक होगी |
महा शिवरात्रि भारतीयों का एक प्रमुख त्योहार है| शिवरात्रि हर महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि को पड़ता है लेकिन फाल्गुन मास कृष्ण चतुर्दशी को पडने वाला शिवरात्री को ही महा शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है| पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरंभ अग्नि लिङ्ग के उदय से हुआ |
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता शक्ति के मिलन की रात होती है | इस दिन साधना का दिन होता है लंबे समय साधक इस दिन की प्रतीक्षा करते हैं | साधकों के लिए यह आध्यात्मिक रूप से पुरुष और शक्ति का मिलन की रात होती है | इस दिन मंत्र जाप, उपवास रात्रि जागरण और रात के चारों पहर के पूजा का विशेष महत्व है |
इसी दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था | साल में होने वाले 12 शिवरात्रियों में से महा शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है | शिवरात्रि का शाब्दिक अर्थ है शिव की महान रात या शिव की रात | यह हर साल हिंदू कैलन्डर के फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष के तेरवी रात/चौदहवे दिन मनाया जाता है| चूँकि भारत में विभिन्न जातीय-भाषाई समूहों द्वारा अगला का पालन किया जाता है इसलिए तिथि का नाम पूरे भारत में एक समान नहीं होता | स्थान के अनुसार समय वे भी थोड़ा फेरबदल हो सकता है |
किंवदंतियां महाशिवरात्रि के महत्व की व्याख्या करती है, इन किं वदन्तियों मे एक मान्यता यह भी है कि शिवरात्रि शिव के नृत्य की रात होती है |
महाशिवरात्रि का उल्लेख कई पुराणो में विशेषकर स्कंद पुराण, लिंग पुराण और पद्म पुराण में मिलता है | शैव ग्रंथ भी इस त्योहार से जुड़ें विभिन्न संस्करणों को प्रस्तुत करते हैं | एक अन्य कथा के अनुसार यह वह रात है जब शिव और पार्वती का विवाह हुआ था |
एक मान्यता समुद्र मंथन से भी जुड़ा हुआ है | समुद्र मंथन के समय जब सबसे पहले हलाहल विष निकला और सारा संसार त्राहिमाम हो गया | देवता ऋषि ,मुनि और राक्षस भोलेनाथ की शरण में गए भगवान ने उनकी प्रार्थना पर विष को पी लिया| बिष ग्रहण करने से भगवान का कंठ नीला पड़ गया इसलिए भोलेनाथ को नीलकंठ भी कहा जाता है यह दिन भी चतुर्दशी का दिन था|
भगवान शिव लोक कल्याण के लिए समर्पण का भाव प्रस्तुत किया , इसलिए इस दिन को शिव रात्रि भी कहा जाता है |पूरी रात्रि देवता और ऋषि मुनि भगवान शंकर को धन्यवाद देने के लिए उनकी आराधना करते रहे | कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी भगवान भोले नाथ को बहुत प्रिय है इस दिन वातावरण में विशेष शक्तियां का प्रभाव होता है | तान्त्रिक इस दिन का बेसर्बी से प्रतीक्षा करते हैं जिससे वह विशेष तंत्र विद्या का प्रयोग कर सकें |
शिवरात्रि का महत्व इतना है कि एक कहानी में इसकी पुष्टि होती है जिसमे भील शिकार करने के लिए और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए जंगल की ओर जाता है | उस दिन उसको शिकार नहीं मिलता और भूखा प्यासा ही रह जाता है गलती से शिवलिंग पर उसके हाथों से बेलपत्र गिर जाता है |
कहानी के अनुसार इतना से ही भगवान भोलेनाथ उस पर प्रसन्न हो जाते हैं इसलिए शिवशंकर को भोलेनाथ भी कहा जाता है | भगवान शंकर थोड़ी सी ही पूजा में प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त गढ़ को इनका आशीर्वाद मिल जाता है|
पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था | इसलिए इस दिन अगर कोई भक्त गण शिव की पूजा अर्चना करते हैं तो माँ अंबे की विशेष कृपा प्राप्त हो जाती है|
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि कहा जाता है , क्योंकि इसी दिन भगवान शिव ने हाल हाल विष का पान किया था | ऐसी मान्यता है कि जो भक्तगण फागुन मास के कृष्ण चतुर्दशी को महा शिवरात्रि का व्रत कर लेता है तो उसे 12 शिवरात्रि का फल प्राप्त हो जाता है | महा शिवरात्रि की पूजा अर्चना और व्रत करने से हमेशा शिव परिवार की कृपा बनी रहे|
ज्योतिर्लिङ्ग का दर्शन बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है लेकिन अगर कोई महासिवरात्रि को ज्योतिर्लिङ्ग के दर्शन करता है तो भगवान शंकर की विशेष कृपा प्राप्त कर लेता है| 12 ज्योतिर्लिङ्ग के स्थान और नाम नीचे उल्लेख किया गया है-
शिवरात्रि के दिन रूद्राभिषेक भी किया जाता है | कहते हैं महा शिवरात्रि को रुद्राअभिषेक कराने से इसका विशेष फल मिलता है| भगवान शिव की रूद्राभिषेक के लिए गंगाजल, गाय का कच्चा दूध, शहद दही शक्कर गन्ने का रस और अनार के रस से भी किया जाता है | गन्ने का रस शहद और अनार के रस से कंधे से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है |
गंगाजल और गाय के शुद्ध दूध से रूद्राभिषेक करने से सुख समृद्धि का वास होता है | भगवान भोले नाथ को सुगंधित पुष्प , बेल पत्र , धतुरा तुलसी दल .इत्र पंच मिष्ठान ,वस्त्र , आभूषण ,गंध रोली अर्पित किया जाता है , साथ में माँ पार्वती के लिए भी सिंगार सामग्री चढ़ाए जाते हैं|
नोट- यहाँ दी गई जानकारी सामान्य जन मानस की मान्यताओं और जानकारीयों पर आधारित है http://43.205.213.15 किसी तरह से भी इसकी पुष्टि नहीं करता |
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